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खबर है कि प्रधानमंत्री कार्यालय में तैनात रहे संजय भारू द्वारा लिखी गयी पुस्तक ‘एन एक्सीडेन्टल प्राइमिनिस्टर’ का तीसरा संस्करण प्रकाशित होने जा रहा है। मेरे विचार से इस पुस्तक की सफलता का राज हमारी उस मानसिकता में छिपा है जो हमें लक्ष्मण रेखाओं के पार झांकने के लिये प्रेरित करती है। यह पुस्तक मैने अभी तक नहीं पढी है। संभवतः भारतीय लोकतंत्र में इस प्रकार की पुस्तक लिखने के राजनीतिक निहतार्थ भी हो सकते हैं परन्तु जिस तथ्य ने मुझे यह पोस्ट लिखने के लिये प्रेरित किया वह है पद और गोपनीयता की शपथ।
किसी राजनेता के मंत्री बनने पर उसे पद और गोपनीयता की शपथ लेनी होती है और सामान्यतः कोई भी राजनेता मंत्री पद से हटने के बाद मंत्रालय से जुडे गोपनीय तथ्यों को सार्वजनिक नहीं करता। इसी तर्ज पर किसी अधिकारी के राजकीय सेवा में प्रवेश के साथ ही ऐसी हो गोपनीयता की शपथ क्यों नहीं दिलायी जाती।
राजकीय सेवा से सेवानिवृति के उपरांत अपने अनुभवों को पुस्तक का आकार देने की पृवृति इसका प्रमाण है कि आपमें अब तक रचनात्मक उर्जा बची है। ऐसी रचनात्मक उर्जा का उपयोग व्यूरोक्रेसी का प्रशिक्षण देने वाले संस्थानों अथवा किसी महत्वपूर्ण महकमें में सलाहकार के रूप में भी किया जा सकता है।
मेरे विचार से हमारी व्यवस्था जब तक प्रत्येक अधिकारी में विद्यमान रचनात्मक उर्जा के उत्सर्ग के लिये किसी चैनल का विकास नहीं करेगी तब तक ऐसी एक्सीडेन्टल घटनायें भी होती ही रहेंगी ।
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